दिल्ली. फेसबुक पर स्टेटस लिख ये स्वीकारने के बाद कि हां, मैंने भाव खाने के चक्कर में अच्छे लड़के गंवाए, रूपवती फिर से रोहित के प्रोफाइल पर गई और उसके फोटोग्राफ्स देखने लगी। हर अगले फोटोग्राफ के साथ वो उसकी और आकर्षित होने लगी…वो जानती थी कि अब कुछ नहीं हो सकता…बहुत देर हो चुकी है…फिर भी उससे बात करने के ख्याल भर से वो एक्साइटिड होने लगी और इसी एक्साइटमेंट में उसने ‘Add Friend’ पर कर्सर ले जा क्लिक कर दिया।
फ्रेंड रिक्वेस्ट एक्सेप्ट किए जाने का इंतज़ार करती रूपवती
एक घंटा बीता, दो घंटे बीते, तीन…चार…पांच…घंटे पर घंटे बीतते गए मगर ‘घंटा’ कुछ नहीं हुआ। आख़िरकार इंतज़ार करते-करते रूपवती सो गई।
अगली सुबह उठी तो उसने देखा कि किसी रोहित नाम के लड़के ने उसे मेल किया है।
पाठकों की सुविधा के लिए हम वो मेल ज्यों-का-त्यों यहां पेश कर रहे हैं।
प्रिय रूपवती,
आज फेसबुक पर लॉग इन किया तो सबसे पहले तुम्हारी फ्रेंड रिक्वेस्ट दिखी। फोटोशॉप में एडिट अपनी प्रोफाइल पिक्चर में तुम आज भी उतनी ही खूबसूरत लग रही हो जितनी कॉलेज के दिनों में लगा करती थी। तुम बिल्कुल नहीं बदली। सिर्फ हालात बदल गए हैं। तब मैं तुमसे दोस्ती करना चाहता था और आज तुम मुझसे दोस्ती करना चाहती हो। मगर सवाल है, आज क्यों? तब क्यों नहीं जब मैं तुम्हारे लिए इतना तड़पता था।
मुझे अच्छी तरह याद है कि एक तो ब्वॉयज़ स्कूल से पढ़ा होने के कारण मेरी लड़कियों से बात करने की हिम्मत नहीं होती थी, ऊपर से तुम इतने एटीट्यूड में रहती थी कि तुम्हें देख मेरी घिग्घी बंध जाती थी। मैं मन ही मन तुम्हें चाहता था मगर कभी कुछ कह नहीं पाया।
स्कूल में था तो किताबों के पीछे तीर वाला दिल बनाकर तुम्हारा नाम लिखा। दोस्तों में तुम्हें ‘तुम्हारी भाभी’ कहा। उस टीचर से ही ट्यूशन पढ़ी जिससे तुम पढ़ती थी, इस उम्मीद में कि चलो एक घंटा और साथ रहने का मौका मिलेगा। मगर कोई फायदा नहीं हुआ। मैं तुम्हें अपने मन के भाव बताना चाहता था मगर तुमने मुझे कभी भाव नहीं दिया।
अपने इन्हीं भावों को बताने के लिए एक रोज़ ‘प्रेम-पत्रों के प्रेमचंद’ टाइप एक लड़के से मैंने लैटर लिखवाया। सोचा, आज दूं, कल दूं, स्कूल में दूं या बाहर दूं। डायरेक्ट दूं या तुम्हारी सहेली के उस भाई से कुरियर करवाऊं जिससे इसी काम के लिए मैंने दोस्ती गांठी थी मगर मेरे दसियों बार रोकने के बावजूद तुम कभी नहीं रुकी। बटुए में पड़े-पड़े ख़त की स्याही फैल गई। पता जानने के बावजूद उसकी डिलीवरी नहीं हो पाई। ख़त पर्स में ही पड़ा रहा और मैं तुम्हें चाहने की ख़ता पर अड़ा रहा।
इस बीच स्कूल ख़त्म हुआ तो कॉलेज जाने का वक्त आया। मां-बाप चाहते थे कि मैं कलेक्टर बनूं मगर तुम्हारे चक्कर में मैंने होम साइंस में एडमिशन ले लिया। घरवाले मेरे लिए कुशल गृहिणी ढूंढना चाहते थे और सिलाई-कढ़ाई के कोर्स में दाखिला ले मैं खुद कुशल गृहिणी बनने की राह पर निकल पड़ा था।
इस बीच दोस्तों ने कहा कि रिश्ते की हालत सुधारना चाहते हो तो पहले अपना हुलिया सुधारो। दर्जी से पैंटें सिलवाना बंद करो, रेडीमेड लाओ। मैं अपनी औकात भूल, उनकी बात मानने लगा। बरबादी के जिस सफर पर मैं निकल पड़ा था, उस राह में अब हाइवे आ चुका था। धीरे-धीरे मैं गाड़ी को पांचवे गियर में डाल रहा था। और इसी क्रम में एक दिन गाड़ी के लिए मैंने अपने बाप से झगड़ा कर लिया। एड में देखा था कि डेढ़ सौ सीसी की बाइक वाले पर लड़कियां फिदा हो जाती हैं।
मुझे लगा गाड़ी के इंजन से लड़कियों के पिकअप का कोई कनेक्शन होता होगा मगर पापा नहीं माने। उन्होंने कहा कि बाइक की क्या ज़रुरत है? 623 कॉलेज के आगे उतारती है। इस ख़्याल से ही मैं भन्ना गया था… सोचा…अगर तुमने मुझे बस से उतरते देख लिया तो मेरे वर्तमान से अपने भविष्य का क्या अंदाज़ा लगाओगी।
मैं ज़िद्द करने लगा मगर पापा नहीं माने। मैं इस महान नतीजे पर पहुंचा कि मेरी सैटिंग न होने की असली वजह मेरा बाप है और ऐसा कर वो खुद को ‘बाप’ साबित भी कर रहा है।
मगर हाय री मेरी किस्मत! तुम्हारे लिए अपने बाप को मैं पाप मान बैठा था मगर तुम्हें मेरे प्यार की अब भी कोई परवाह नहीं थी।
इन्हीं नाज़ों-नख़रों में तुमने कॉलेज के भी तीन साल गुज़ार दिए। मेरा पेशंस जवाब देने लगा था और मेरे पेरेंट्स मुझे पहले ही जवाब दे चुके थे। और फिर आया वो दिन, जब मैंने तुम्हें आख़िर बार देखा…फाइनल ईयर के रिज़ल्ट के बाद तुम कॉलेज आई थी…तुमने हाथ में अंगूठी पहन रखी थी…मैंने सोचा…करियर की बेहतरी के लिए शायद तुमने पुखराज पहना है मगर एक बात मेरी समझ से परे थी कि अगर पुखराज ही पहना था तो तुम्हारी सहेलियां तुम्हें बधाई क्यों दे रही थी!
माजरा समझते मुझे देर न लगी…मेरे पांवों के नीचे से ज़मीन निकल गई…मैं मुंह में रूमाल ठूंस…ब्लैक एंड व्हाइट फिल्मों की हीरोइन की तरह रोता हुआ वहां से चला गया। उस रात मैंने खाना नहीं खाया मगर अगली सुबह कसम खायी की अब तुम्हें भूल जाऊंगा।
मुझे बताते हुए बेहद अफसोस हो रहा है रूपवती कि मैं आज भी अपनी उस कसम पर कायम हूं इसलिए तुम्हारी फ्रेंड रिक्वेस्ट एक्सेप्ट नहीं कर सकता।
आख़िर में यही कहना चाहता हूं कि मैं अपनी एवरेज-सी दिखने वाली बीवी के साथ खुश हूं और चाहता हूं कि तुम भी साइज़ में मोर दैन एवरेज अपने पति के साथ खुश रहो।
तुम्हारा (हो न सका)
रोहित